जानती हूँ मै,
मानती हूँ मै ,
तू भी आज तड़पता होगा !
हर दिन से ज्यादा,
आज और कलपता होगा !!
देता होगा मुझे तू.. सौ सौ गालियाँ,
औरो की तरह ही कोसता होगा !!
बरसो मैंने भी छानी है खाक,
हर कचरे क़े ढेर में...
दिखाई देते थे केवल अपने ही पाप
दिखता केवल तुम्हारा ही चेहरा
लेकिन क्या मै पापिन थी,
कौन कर पाया आज तक
फैसला किसी क़े भी हक़ में !
दुनिया का क्या है,
वह तो कहती रहती है,
कुछ होने पर \
कुछ न होने पर भी !!
देना चाहती थी,
प्यार-दुलार मै भी
बन कर एक सम्पूर्ण माँ ...
नियति ही शायद ख़राब थी
या फिर दोष केवल मेरी किस्मत का !!
(मातृ दिवस क़े अवसर पर एक माँ का निवेदन .....!)