Saturday, December 18, 2010

नई सुबह

इसके पहले क़े सब कुछ लूट जाये..!
चलो,एक बार तो हम होश में आये...!!
राह तक रहे हम सब...
कौन किसकी आंख खोले ....!
भला हो जायेगा जग का,
गर, सिर्फ अपनी-अपनी ही खोले....!!
तुम्हारी पलकों का झपकना,
मद भरी नजरो का उठना....!
उन नशीली आखों का खुलना,
लाजिमी है मेरा इंतजार करना....!!

देखो, हो गई ना हमारी बात सच...
क्या खुलवाने चले थे...और क्या खोल रहे है....?

4 comments:

  1. सचमुच शानदार व्यंग्य है ... ये कभी कभी कम शब्दों में बहुत कुछ कहने जेसा हो जाता है .... पता नहीं आपने तामस पढ़ी है या नहीं मगर अगर आप उसका अंत देखेंगे तो बिलकुल यही सत्य सामने आएगा और ये निर्विवादित रूप से सत्य है ... की हल प्रक्रति में ही है

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  2. वाह, क्या बात कही है ....मज़ा आ गया !

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  3. राह तक रहे हम सब...
    कौन किसकी आंख खोले ....!सब कुछ कह दिया आपने इन दस लाईनों में

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  4. मन नहीं भरा अब तक................धण्टों लगेंगे आपके इस ब्लाग की दुनिया की सैर में.........आज बस इतना ही
    सादर
    यशोदा

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