जीवन भर चलता रहा मै, लेकर पुरे परिवार का रेला !
उम्र क़े अंतिम पड़ाव पर, बैठा रहता ताकता अकेला !!
बजाई थी बड़ी शान से जिनके पैदा होने पर थाली !
वही आज हमें बजाते दे -देकर जोर जोर से गाली !!
कहते है सब भुगत कर जाना पड़े, नहीं कही स्वर्ग और नर्क !
जीवन की गोधुली बेला में न जाने, क्यों हो जाय बेडा गर्क !!
गुजर जाती है उम्र सारी, नहीं गुजरती अब अंतिम बेला !
आँखे भी थक चुकी अब, देख जीवन का ये खेल अलबेला !!
बचपन से सुनते आए, वही काटोगे जैसा था तुमने बोया !
पिता क़े थे हम श्रवण-कुमार, देख अपनी दिल है रोया !!
bhut acha likha hai.....budhape ka dard saf nazar aa rha hai.....
ReplyDeleteIts heart touchable line...
ReplyDeleteबचपन से सुनते आए, वही काटोगे जैसा था तुमने बोया !
ReplyDeleteपिता क़े थे हम श्रवण-कुमार, देख अपनी दिल है रोया !!
bahut hi khubsurti se aap ne hrday mai halchal macha di aakhe bhar aayi ,
Very well said.
ReplyDeleteBudhape ka khauf kahoge?
kya baat hai..'
ReplyDeletekhub kahi aapne..
magar budhapa itna dardnaak nahi hota ji..
zara rukiye..
sochiye budhape ka vo aaram..
zindagi bhar ki gayi daud dhup se raahat..
aur apni zindagi khud ke liye jeene ka ek mauka..
aap ka ye badhaape ki taraf dekhne ka nazariya kuch hadd tak to jaroor badlega..
ek baar soch ke jaroor dekhiyega
bahut sundar. umra k antim padav.....
ReplyDeleteumra k antim padav par....bahut sundar.padma
ReplyDeletesachi or satik bat kahi hae
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