बचपन में देखा करता था
गाँव में पैसे भेजता हुआ पिता !
मजाल है कि एक भी महीना,
कभी गया हो इससे रीता !!
हर माह पहली तारीख को
बंधा हुआ एक निश्चित क्रम !
जो कभी टूट न पाया
बाबा क़े जीवन पर्यंत !
सोचा करता था,
पैंट मेरी कब से है फटी हुई
माँ करती रहती है पैबंद उसे
इन्हे तो मेरी कोई चिंता ही नहीं
बेटे से बड़ा हो गया पिता उन्हें !
आज मै भी करता रहता हूँ,
हर पहली तारीख का इंतजार !
जो इसी तरह निकल जाती है
रीती हुई बार बार !!
आज मै बड़ा नहीं हूँ,
क्यों कि मेरे बेटे को
चिंता है ज्यादा मुझसे,
मेरे अपने पोते क़ी....!
likhna bhool gaya hoon ...haan mahsoos karta hoon....sayahi sookh jaati hai us waqt ka sach laykar...aur dil hai ki maanta nahi...
ReplyDeletesir sanjai mishra naam hai mayra kafi gahrai ki baat hai es liye ye keypad dab gaya ki likhna bhool gaya hoon..
ReplyDeleteआज आने का मौका मिला आपके ब्लाग पर
ReplyDeleteआते ही नई पोस्ट पढ़ी लेकिन कुछ कहूँगा नहीँ
क्योँकि कहने के लिए शब्द चाहिए और ऐसे नायाब शब्द हैँ नहीँ मेरे पास....SIRAJ FAISAL KHAN@FACBOOK