Sunday, September 23, 2012

कैसी ये दुनियादारी.........?


गर , चाहते   हो  तुम भी गुजारना हसीं  बुढ़ापा ! 
छोड़ो दुनियादारी, मत खोयो कभी अपना  आपा !!

ना देना भूले से भी किसी को उपदेश 
और ना ही देना , बिन माँगी सलाह !
रहो अपने ही घर में, बन कर मेहमान, 
चुन ही लेंगे सब अपनी-अपनी राह !!

नहीं मानता जब कोई, तेरी बात !
क्यों बैठे सोचा करता,यूँ पूरी रात !!
भले, आज लगती हो तेरी बातें उनको बकवास !
सुनने में भी नहीं आती वो, किसी को कुछ रास !!
अनुभवों क़े बोल वैसे भी पहले लगते ही है, कडवे !
पड़ती है जब एक बार, हसीं लगते तब अपने दड्बें !!
वक़्त क़े साथ-साथ वो भी, कभी तो सुधर जायेंगे !
आयेंगे लौट कर यहीं, वरना फिर किधर जायेंगे !!

Friday, May 11, 2012

सच ही तो है.............!!


गर, करनी हो साठ साल तक ऐश
तो जीवन के छह साल मेहनत करना सीख !
वरना, छह साल तक कर ले बस ऐश
और माँगता रह, फिर साठ साल तक भीख !!

याद आती है आज फिर तन्हाइयों में,
कही हुई बड़ों की वो वक्ती कड़वी बातें !
सुनते ही जिन्हें, उस वक्त पर
खौल उठती थी शरीर की सभी आंतें !!

जल-सा जाता था, शरीर का एक-एक रोआं
लगता था, कहीं ये दुश्मन तो नहीं हमारे !
मान जाते गर समय रहते बात उनकी
तो आज हो जाते हमारे भी वारे-न्यारे !!

जीवन के कुछ वर्षों का अपना ही महत्त्व होता है !
जिसने उन्हें खो दिया वह तो जीवन भर रोता है !!

Monday, March 26, 2012

ये आदत.......!!


जब भी डालनी चाही आदत,
किसी अच्छी नई आदत की !
बार-बार रास्ता रोका
उन्ही पुरानी आदतों ने !

घबराकर सोचा,
कितना बदनसीब हूँ मै
खिलौना बन गया हूँ,
मै अपनी आदतों का !
नहीं कर पाया
एक अच्छी आदत का
बीजारोपण !

किन्तु, सोचना ऐसा
थी केवल मेरी एक भूल !
वो आदतें, जो हो गई
आज इतनी मजबूत
जड़ें नहीं जमाई उन्होंने
केवल एक ही दिन में !
उन्होंने भी कभी,
संघर्ष किया होगा जमकर
तब जाकर हो पाई वो
आज इतनी प्रबल !

राह ताक रही आज
वैसे ही संघर्ष की
ये बेचारी नई आदत !
जमायेंगी अपनी जड़ें ये भी
कर के पुरानी आदतों से
एक लंबी बगावत !! 

Saturday, March 24, 2012

नसीब ऐ-गम.....!!


रहती हो भले, रात अँधेरी
मेरे नसीब की तरह
टिमटिमाते रहते है फिर भी
आसमान पर इक्के-दुक्के सितारे !
आंसुओ से मेरे, 
भला क्या मुकाबला उनका
झिलमिलाते ही रहते है सदा
आंसुओं में मेरे अनगिनत सितारें !!

सुबह से ही आज जा रहा
क्यों डूबा मेरा ये दिल
ना धडका था कभी यूँ
रह रहकर तो मेरा दिल !
जाने ऐसी क्या बात थी
उस नन्हें-मुन्ने चिराग में
टूटते ही उसके आज फिर
टुकड़े-टुकड़े हो गया
मेरा ये अपना दिल !!

संभाल-संभालकर रखा था
मैंने उस चिराग को
कितने जतन, कितने बरसों से
लगता था कुछ ऐसा, कि
मेरी जिंदगी से है उसका गहरा नाता
टूटेगा वह तो टूट कर रह जाऊंगा
और आज,
आज तो मेरा सब कुछ
रह गया टूट कर !!

Sunday, March 18, 2012

क्या भूल सकते हो कभी....??


क्या भूल सकते हो कभी
बिन निगाहों वाले बाबा की,
सब कुछ देखती हुई वो निगाहें !
याद तो आज भी होगी,
आंगन में अमरस का गिलास देती
बड़ी-अम्मा की वो प्यार भरी बाहें !!

सुबह-सबेरे प्रतिदिन
औरों के बागों से आम चुराना !
कैथा वाली बुआ की बाग पर
केवल अपना ही हक जमाना !!
पानी भरने के लिए बाबा का
कुए की जगत से हांक लगाना !
और तुम्हारा लोटिया लेकर,
फिर खेत की और निकल जाना !!
क्या भूल सकते हो कभी उसको,
खेत में घुस कर आलू खिलाना !
पता लगते ही गांव में बुआ का,
हम सब पर जोर-जोर से चिल्लाना !!

सच तो यह है, कि
आज भी हम कुछ नहीं भूले !
वक्त के साथ-साथ केवल,
अपने परिवारों में ही है घुले !!
क्या अपनों को कभी कोई,
यूँ ही कभी भूल पाता है !
वक्त पड़ने पर तो अपना ही
केवल दौड़ा चला आता है !! 

Saturday, March 17, 2012

शून्य से शून्य तक......!!

सहेजता रहा ता-उम्र मै,
ढेर सारों शून्यों को !
आकर अचानक
एक
बढ़ा गया उनके मूल्यों को !!

शून्य से ही रहा हर दम
मेरा बहुत निकट का नाता !
जब देखो तब, बेचारा
बिन बुलाए है चला आता !!

रोते ही रहते क्यों हम अक्सर,
इस अमूल्य शून्य को ले कर !
शून्यता भी तो जीवन में,
बहुत कुछ जाती है, दे कर !!

ना जाने क्यों लोग इस तरह
शून्य से रहते, सदैव घबराते !
इसके बाद ही तो गिनती में
आकडें बाकी, सब है आते !!

शून्य तो अक्सर
मिल ही जाता बिन तलाशे !
क्यों ना आगे बढ़कर
उसे ही, हम और जरा तराशे !!

बढ़ जाएँ जीवन में,
जब ढेर सारी शुन्यता !
समझों कि, है मिलने वाली
अब, जीवन को मान्यता !!

Thursday, March 8, 2012

होली ऐ-वर्चुअल.......


सबेरे से बैठे-बैठे नेट पर,
जब जोर से भूख लग आई !
बड़े प्यार से हमने डरते-डरते,
बीबी को अपनी हांक लगाई !!

हमने कहा-
भई, सबेरे से कुछ भी नहीं खाने को मिला है !
होली क़े दिन भी तुम्हें हमसे क्यू कुछ गिला है !!

बात सुनते ही हमारी श्रीमती जी झल्लाई !
हम सोचे, ना जाने अब क्या आफत आई !!

घूरते हुए दूर से ही यूँ,
आँखे तरेर कर वो बोली !
और खेलो, बैठ कर नेट पर 
आप अपनी वर्चुअल होली !!

होली खेलने क़े बाद,
वर्चुअल मिठाई भी खा लेना !
पेट भर जाय तो अपने,
वही दोस्तों को भी खिला देना !!

अब तो बस दोस्तों का ही बचा था एक सहारा  !
यहाँ पर तो पहले ही बहुत चढ़ा हुआ था पारा !!

कुछ दुश्मन-ऐ दोस्तों ने दी सलाह !
सुनकर  हम भी बोले-  वाह भई वाह !!

कहा, थोड़ी सी उन्हें भी खिला दो भाँग !
पूरी हो जाएँगी, आपकी खाने की माँग !!

हम पर तो पहले से ही बहुत चढ़ी हुई थी !
पत्नी जी भोजन ना देने पर अड़ी हुई थी !!

ना देख और कोई अच्छा उपाय,
आखिर हमने जब दोस्तों की बात मानी !
दोस्त भी कैसे दुश्मन बन जाते है, 
बात ये अच्छे से उसी दिन हमने जानी !!

खाने क़े बाद उनकी भाँग !
चूल्हे में गई हमारी माँग !!

बेहतर है,ना सुनो आगे की कहानी, 
हमारा तो जो  हुआ, सो हुआ !
दुश्मन को भी ना मिले ऐसे दोस्त 
मांगते है केवल, बस यही दुआ !!