मै तो मज़बूरी में आया था,
गाँव से शहर की ओर !!
पढ़ लिख कर तुमने क्यों किया,
देश को ही एक ओर !!
गिरवी रखकर आया था यहाँ,
मै अपना मान और सम्मान !
सपनों में आज भी दिखते वही,
उजड़े खेत और खलिहान !!
क्या तुम भी थे मेरी ही तरह
कुछ इस तरह बेबस मजबूर !
या सिक्को की खनखनाहट ने
कर दिया तुम्हे सबसे दूर !!
शहर में रहते हुए भी आज
याद आते है मुझे, गाँव क़े वे गलियारे !
क्या तुम्हे भी याद आते कभी,
क्या तुम्हे भी याद आते कभी,
अपने निकट सम्बन्धी और प्यारे !!
कहने को तो आज ही सब छोड़
मै वापस भी चला जाउँगा !
पहले भी तो कुछ ना था,
पहले भी तो कुछ ना था,
अब भी शायद कुछ ना मिल पाए !
मेरी जरुरत आज गाँव में
भले किसी को हो या ना हो
गर तुम वापस आ जायो,
गर तुम वापस आ जायो,
शायद यह देश फिर से निखर जाए !!