रोज जीता रहा......
रोज मरता रहा....
जिंदगी यूँ ही गुजारता रहा !
नई जिंदगी होती, हर दिन मेरी !
हर रात होती, फिर मौत मेरी !!
मर कर रोज, मै फिर जीता रहा !!
जिंदगी मेरी, ऐसे ही शान से बढती रही !
कि, मौत भी आने पास कतराती रही !!
नहीं है जिंदगी मेरी, कुछ ऐसी सस्ती !!
बनाई है उसने भी, दुनिया में कुछ हस्ती !!
मेरे बिना कल तुम्ही को पछताना पड़ेगा !
एक बार फिर मेरे पास लौट आना पड़ेगा !!
सुबह-सुबह खुले जब ये मेरी पलकें !
बीती बातों पर कभी ना ये है छलकें !!
जो बीत गया, उसे अब क्या याद रखना !
आगे अभी भी, बहुत कुछ काम है करना !!