Saturday, July 2, 2011

दायरा समय का.....!!

समझाया करती थी माँ बचपन में लाख !
बेटा, वक़्त रहते  बना ले तू अपनी साख !!

पर,कही हुई बातें सिर पर से गुजर जाती !
काश, वो बातें तब ही समझ में आ पाती !!

बनकर बाप, आज जब बच्चे को समझाता ! 
बार-बार माँ का ही चेहरा सामने आ जाता !!

काश, माँ तेरी कही बातें वक़्त रहते समझ जाता !
आज फिर क्यों इस तरह अपने दिल को तडफाता !!

जिसकी गुजरनी थी जैसी, उसकी तो वैसी गुजर गई !
सोच लो मेरे भैय्या, तुम्हारी है अभी बारी नई-नई !!

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना है सर.... सादर....

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