बहुत मशहूर हुए हम
तुम्हारे नाम क़े कारण !
आज तुम्ही ने मुख मोड़ा
क्यों कर लिया मौन धारण !!
ख्वाबों का पेड़ मुरझा गया
वीरान हो गई हर डाली !
बीते हुए अतीत की आखिर
कब तक करू मै रखवाली !!
वेदनाओं का पिटारा अब
मेरा अपना मीत बन गया !
सो नैया को मैंने स्वयं ही
तूफान की ओर मोड़ दिया !!
तन्हाई में, पवन में
मेरा दर्द है लहराता !
मै तो बस अन्दर ही
घुट कर रह जाता !!
अम्बर को या धरती को
किसे अपनी व्यथा सुनाये !
जब तार ही टूट गया
मोती हम कैसे पिरोये !!
बहुत बढ़िया सर.
ReplyDelete------------
कल 19/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अम्बर को या धरती को
ReplyDeleteकिसे अपनी व्यथा सुनाये !
जब तार ही टूट गया
मोती हम कैसे पिरोये !!
बहुत बढ़िया सर....सादर...
मन कि व्यथा को चित्रित करती सुन्दर रचना
ReplyDeleteजब तार ही टूट गया
ReplyDeleteमोती हम कैसे पिरोये !! bahut achchi lagi......
वाह भाईजान ख़्वाबों का पेढ और उसकी व्यथा खूब बयान की है ..बधाई हो .अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
ReplyDeleteआप सबका तहे दिल से आभारी हूँ...! भविष्य में भी इसी तरह के सहयोग की कामना करता हूँ ...!!
ReplyDeletesundar blog
ReplyDeleteतुम क्या गए, जिंदगी चली गयी,
ReplyDeleteजमीं मुझ पर हंस पड़ी,
अम्बर भी रो दिया.
पर न तुम आये,
न तुम्हारे आने की आस ही आई.
दिनेश जी,
बहुत ही संवेदनशील कविता. भावाभिव्यक्ति में पूर्ण सफल.
कमाल का लेखन है, चंद लफ्जों में कितनी बडी बात कह दी है आपने
ReplyDeleteजाने कैसी आह वेदना कि
ReplyDeleteअब पुनः उर में उपजती है
इस निर्जन अटवि में क्यूँ
स्मृतियों कि रागिनी बजती है