Friday, December 24, 2010

हाय रे नववर्ष....!

प्रत्येक वर्षं नववर्ष कहलाता है !
एक वर्ष क़े बाद पुनः नववर्ष आता है !
एक माह क़े बाद नया माह आता !
रात क़े बाद आने वाला दिन कहलाता !
वे तो नए आते ही रहते है !
सिर्फ हम वही पुराने रह जाते है !
लकीर क़े फकीर बने रहते है !
उन्ही लकीरों में फंसे रह जाते है !
नववर्ष में हम क्यों नहीं नए हो जाते !
कुछ ऐसे ही प्रश्न मुझे रहते है सताते !
इन सब को तो हम नया रूप देते है !
अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारते है !
वह हमे क्यों नहीं बदलता है !
लकीर तोड़ने पर विवश करता है !
वह हमे तो नहीं बदल पाता है !
बल्कि हमे बदलने क़े प्रयास में, 
बेचारा वह स्वयम बदल जाता है !

3 comments:

  1. एक मार्गदर्शन करती हुई रचना.
    अगर हम नववर्ष,जन्मदिवस,विवाह आदि की
    वर्षगांठ मनाते है,तो कुछ नए संकल्प लेना चाहिए

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