Saturday, March 26, 2011

अब हमारी बारी है....!!


लोगो ने पाल रखी है,
एक गलतफहमी...! 
न जाने क्यों बनता,
है हमसे इतना रहमी !! 
कहते है वो कि,
बुढ़ापा होता है बड़ा ही दर्दनाक !
सोच लो पहले.. जरा अच्छे से ,
हमारे जैसा नहीं कोई खतरनाक !!
अरे मजाल है किसी की,
जो करे हमारी नाक में दम !
बाजुओ का दम हुआ कम 
तो क्या हुआ, नहीं कोई गम !!
बालो को रंगते हुए आखिर,
हमने उड़ा ही दिया बालो को !
य़ू ही नहीं लैन में लगाया,
इतने सारे घर वालो को !!
अरे यारो, जरा रुकिए...
सोचिये, बुढ़ापे का वो आराम !
न कोई धंदा, न कोई काम
सब कामो से कर क़े राम राम !!
जिंदगी भर की गई, 
नामुराद दौड़ धुप से राहत !
नहीं रह जाती बाकी,
अब किसी और की चाहत !!
बुढ़ापा तो होता है आपके, 
जीवन का सुनहरा चौका !
और अपनी जिंदगी 
ख़ुद क़े लिए जीने का 
एक सुनहरा मौका......!!

Sunday, March 20, 2011

एक मोड़ ऐसा भी.....!!


जीवन भर चलता रहा मै, लेकर पुरे परिवार का रेला !
उम्र क़े अंतिम पड़ाव पर, बैठा रहता ताकता अकेला !!

बजाई थी बड़ी शान से जिनके पैदा होने पर थाली !
वही आज हमें बजाते दे -देकर जोर जोर से गाली !!

कहते है सब भुगत कर जाना पड़े, नहीं कही स्वर्ग और नर्क !
जीवन की गोधुली बेला में न जाने, क्यों हो जाय बेडा गर्क !!

गुजर जाती है उम्र सारी, नहीं गुजरती अब अंतिम बेला !
आँखे भी थक चुकी अब, देख जीवन का ये खेल अलबेला !!

बचपन से सुनते आए, वही काटोगे जैसा था तुमने बोया ! 
पिता क़े थे हम श्रवण-कुमार, देख अपनी  दिल है रोया !!

Thursday, March 17, 2011

एक चिंतन....


भेड़ और बकरिया
कभी कुछ नहीं बोलती, 
मिमयाने क़े अलावा
दूसरा कोई शब्द नहीं बोलती 
क्या उन्हें सत्यवादी मान लेना चाहिए.....?
भोले-भाले हिरण
कभी हिंसा नहीं करते, 
बल्कि आहट सुनकर 
कोंसो दूर भाग जाते है 
क्या उन्हें परम दयालु मान लेना चाहिए...?
कोई अँधा, बहरा, मूक और विकल शरीर 
मनुष्य जंगल में जीवन काटता हुआ 
न अशुभ सुनता है,
न अशुभ बोलता है,
न अशुभ करता है !
क्या हमें उसे मुनि मान लेना चाहिए ....?
उन्मत्त अथवा मूर्छित मनुष्य
अशुभ संकल्प-विकल्प से शून्य होता है, 
क्या हमें उसे महात्मा मान लेना चाहिए...? 
कुछ न करना हमारा धर्म नहीं, 
बल्कि क्रियात्मक है धर्म तो  ! 
किसी का दया पात्र बनने क़े बजाय
हमें अपने कंधे हमेशा मजबूत 
रखने का प्रयास करना ही है सर्वोपरि ! 

Wednesday, March 9, 2011

हम वो है....!!



काश यह धरती होती कागज, और समुन्दर में भरे होते रंग 
तो इस दुनिया को न जाने कब का रंगीन बना डालते हम !!

वे तस्वीर सिरहाने रखकर कमरे की बत्तिया जलाते-बुझाते,
और लाइट बंद करके आराम से पूरी रात चैन से सोते हम !!

वे पुराने फटे प्रेम-पत्रों को फिर से बार-बार  चिपकाते,
और उनके लिखे पत्रों को बिना पढ़े फाड़ते रहते हम !!

वे खिड़की से फेंके हुए जुल्फों क़े लच्छे संवारते,
और नकली बाल हाथ में लिए फेंकते रहते हम !! 

वे बैठे-बैठे चमकती रेल की पटरी रहते  देखते, 
और ट्रेन में बैठकर कही दूर निकल जाते हम !!

लिए हाथ में फूटी चूड़ी का टुकड़ा रहे वे  निहारते,
खबर भी ना होने पाई कब कंगन पहना गए हम !! 

वे इसी तरह पूरी जिन्दगी, य़ू ही  रहे गुजारते, 
सोच भी न पाए, कब पूरी जिंदगी गुजार गए हम !!

Tuesday, March 1, 2011

मेरा देश महान....!!




अभी- अभी उडती हुई एक ताजा खबर आ रही है !
सरकार, अब आंसुओ पर टैक्स लगाने जा रही है !!

अब हमें ,एक-एक आंसू का हिसाब रखना होगा !
जितना रोयोगे, उतना ज्यादा टैक्स भरना होगा !!

वाह री दुनिया..... वाह मेरे नायब मुल्क ...!
दिल में रोने पर भी लगा दे उत्पादन-शुल्क !!

साँसे लेने पर, आँहे भरने पर भी " कर " चुकाना होगा !
इस देश में पैदा होने का तो फ़र्ज़ आखिर निभाना होगा !! 

थक गया इन्सान अब जा जाकर मंदिरों में !
लेकिन महगाई को ना बांध पाया जंजीरों में !!

ना हँस सके हम, न रो सके हम !
तुम्ही बताओ, अब क्या करे हम !!