भेड़ और बकरिया
कभी कुछ नहीं बोलती, मिमयाने क़े अलावा
दूसरा कोई शब्द नहीं बोलती
क्या उन्हें सत्यवादी मान लेना चाहिए.....?
भोले-भाले हिरण
कभी हिंसा नहीं करते,
बल्कि आहट सुनकर
कोंसो दूर भाग जाते है
क्या उन्हें परम दयालु मान लेना चाहिए...?
कोई अँधा, बहरा, मूक और विकल शरीर
मनुष्य जंगल में जीवन काटता हुआ
न अशुभ सुनता है,
न अशुभ बोलता है,
न अशुभ करता है !
क्या हमें उसे मुनि मान लेना चाहिए ....?
उन्मत्त अथवा मूर्छित मनुष्य
अशुभ संकल्प-विकल्प से शून्य होता है,
क्या हमें उसे महात्मा मान लेना चाहिए...?
कुछ न करना हमारा धर्म नहीं,
बल्कि क्रियात्मक है धर्म तो !
किसी का दया पात्र बनने क़े बजाय
हमें अपने कंधे हमेशा मजबूत
रखने का प्रयास करना ही है सर्वोपरि !
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं!
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर