काश यह धरती होती कागज, और समुन्दर में भरे होते रंग
तो इस दुनिया को न जाने कब का रंगीन बना डालते हम !!
वे तस्वीर सिरहाने रखकर कमरे की बत्तिया जलाते-बुझाते,
और लाइट बंद करके आराम से पूरी रात चैन से सोते हम !!
वे पुराने फटे प्रेम-पत्रों को फिर से बार-बार चिपकाते,
और उनके लिखे पत्रों को बिना पढ़े फाड़ते रहते हम !!
वे खिड़की से फेंके हुए जुल्फों क़े लच्छे संवारते,
और नकली बाल हाथ में लिए फेंकते रहते हम !!
वे बैठे-बैठे चमकती रेल की पटरी रहते देखते,
और ट्रेन में बैठकर कही दूर निकल जाते हम !!
लिए हाथ में फूटी चूड़ी का टुकड़ा रहे वे निहारते,
खबर भी ना होने पाई कब कंगन पहना गए हम !!
वे इसी तरह पूरी जिन्दगी, य़ू ही रहे गुजारते,
सोच भी न पाए, कब पूरी जिंदगी गुजार गए हम !!
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