क्यों मै सोचूँ, वह नहीं है मेरा अपना !
अपना सपना भी होता है केवल अपना !!
जो भी है, जितने भी है, सब मेरे अपने है !
कुछ हकीकत में है, बाकी मेरे सपने में है !!
परवाह नहीं गर, भटकता रहे मेरा तन !
नियंत्रण में तो रहता है हमेशा मेरा मन !!
चाह नहीं मुझे कि कोई कहें मुझे अपना प्यारा !
मै तो मन ही मन ना जाने कब-कब क्या हारा !!
अपना सपना भी होता है केवल अपना !!
जो भी है, जितने भी है, सब मेरे अपने है !
कुछ हकीकत में है, बाकी मेरे सपने में है !!
परवाह नहीं गर, भटकता रहे मेरा तन !
नियंत्रण में तो रहता है हमेशा मेरा मन !!
चाह नहीं मुझे कि कोई कहें मुझे अपना प्यारा !
मै तो मन ही मन ना जाने कब-कब क्या हारा !!
बहुत सुंदर, एक बार सोचने को मजबूर करती हुई कविता ...!!
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