Sunday, September 25, 2011

क्यों मै सोचूँ,...?

क्यों मै सोचूँ, वह नहीं है मेरा अपना !
अपना सपना भी होता है केवल अपना !!
जो भी है, जितने भी है, सब मेरे अपने है !
कुछ हकीकत में है, बाकी मेरे सपने में है !!
परवाह नहीं गर, भटकता रहे मेरा  तन !
नियंत्रण में तो रहता है हमेशा मेरा मन !!
चाह नहीं मुझे कि कोई कहें मुझे अपना प्यारा !
मै तो मन ही मन ना जाने कब-कब क्या हारा !!
 

1 comment:

  1. बहुत सुंदर, एक बार सोचने को मजबूर करती हुई कविता ...!!

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