रहता हूँ खड़ा जब भी
मै आईने क़े सामने
दिखता रहता है, एक चेहरा
कुछ अन्जाना सा
कुछ जाना पहचाना सा !!
सोचता हूँ, क्या यहीं है वो
करता रहता हूँ, जिसके लिए
हर गुनाह मै बारम्बार !
और करता रहूँगा लगातार !!
कौंधती है, बिजली-सी
ना जाने क्यों ये चेहरा
नया सा लागे हर बार !!
क्यों बदल जाये केवल
मेरा ही अपना चेहरा
करता हूँ गुनाह जिन चेहरों क़े लिए
नहीं बदलते सिर्फ वही चेहरे......!!
सुन्दर अभिव्यक्ति सर,
ReplyDeleteसादर...
गहन भाव युक्त चिंतन ..बेहद सार्थक प्रस्तुति ...सादर !!!
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ..
ReplyDeletebhut hi sundar dinesh ji,
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteआपकी राय हमारे लिए अमूल्य है !
इसी तरह प्रेम-भाव बनाये रखे ............!!
chehrey per ki gayee abhivyakti .......... adbhuth !!!
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