गर , चाहते हो तुम भी गुजारना हसीं बुढ़ापा !
छोड़ो दुनियादारी, मत खोयो कभी अपना आपा !!
और ना ही देना , बिन माँगी सलाह !
रहो अपने ही घर में, बन कर मेहमान,
चुन ही लेंगे सब अपनी-अपनी राह !!
नहीं मानता जब कोई, तेरी बात !
क्यों बैठे सोचा करता,यूँ पूरी रात !!
क्यों बैठे सोचा करता,यूँ पूरी रात !!
भले, आज लगती हो तेरी बातें उनको बकवास !
सुनने में भी नहीं आती वो, किसी को कुछ रास !!
सुनने में भी नहीं आती वो, किसी को कुछ रास !!
अनुभवों क़े बोल वैसे भी पहले लगते ही है, कडवे !
पड़ती है जब एक बार, हसीं लगते तब अपने दड्बें !!
पड़ती है जब एक बार, हसीं लगते तब अपने दड्बें !!
वक़्त क़े साथ-साथ वो भी, कभी तो सुधर जायेंगे !
आयेंगे लौट कर यहीं, वरना फिर किधर जायेंगे !!
आयेंगे लौट कर यहीं, वरना फिर किधर जायेंगे !!
शायद यही सही है अगर चैन से जीना है और वृद्धाश्रम को सही सलामत गुजरना है.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.
आपका ब्लॉग अच्छा लगा इसलिए शामिल हो रही हूँ.
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