Sunday, September 23, 2012

कैसी ये दुनियादारी.........?


गर , चाहते   हो  तुम भी गुजारना हसीं  बुढ़ापा ! 
छोड़ो दुनियादारी, मत खोयो कभी अपना  आपा !!

ना देना भूले से भी किसी को उपदेश 
और ना ही देना , बिन माँगी सलाह !
रहो अपने ही घर में, बन कर मेहमान, 
चुन ही लेंगे सब अपनी-अपनी राह !!

नहीं मानता जब कोई, तेरी बात !
क्यों बैठे सोचा करता,यूँ पूरी रात !!
भले, आज लगती हो तेरी बातें उनको बकवास !
सुनने में भी नहीं आती वो, किसी को कुछ रास !!
अनुभवों क़े बोल वैसे भी पहले लगते ही है, कडवे !
पड़ती है जब एक बार, हसीं लगते तब अपने दड्बें !!
वक़्त क़े साथ-साथ वो भी, कभी तो सुधर जायेंगे !
आयेंगे लौट कर यहीं, वरना फिर किधर जायेंगे !!

2 comments:

  1. शायद यही सही है अगर चैन से जीना है और वृद्धाश्रम को सही सलामत गुजरना है.

    सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

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  2. आपका ब्लॉग अच्छा लगा इसलिए शामिल हो रही हूँ.

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