एक ज़माने में हर गाँव में होती थी चौपाल !
जिसमे हर कोई रखते अपने-अपने ख्याल !!
सब लोग होते थे आमने- सामने !
और खूब चला करती थी तीर-कमाने !!
सब कोई मिलकर हंसी-मजाक करते !
पर कोई अपनी सीमाये कभी न लांघते !!
फेस-बुक भी है चौपाल का आधुनिक रूप !
हम क्यों करे इसे इतना विभ्त्सव कुरूप !!
अगर हम स्वयं ही कर ले आत्म-मंथन !
तो फिर करना क्यों पड़े फेसबुक-मंथन !!
कुल सटीक बात कही.
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
जहा तक फेसबुक-मंथन का प्रश्न है,
ReplyDeleteएक नितांत जरुरी यथार्थ है !
वरना कभी भी,कुछ भी,किसी को भी
कहने और लिखने में क्या अर्थ है !!
बेहतरीन प्रस्तुती....!!
ReplyDeleteबेहतरीन सटीक बात....!!
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