सबेरे से बैठे-बैठे नेट पर,
जब जोर से भूख लग आई !
बड़े प्यार से हमने डरते-डरते,
बीबी को अपनी हांक लगाई !!
हमने कहा-
भई, सबेरे से कुछ भी नहीं खाने को मिला है !
होली क़े दिन भी तुम्हें हमसे क्यू कुछ गिला है !!
बात सुनते ही हमारी श्रीमती जी झल्लाई !
हम सोचे, ना जाने अब क्या आफत आई !!
घूरते हुए दूर से ही यूँ,
आँखे तरेर कर वो बोली !
और खेलो, बैठ कर नेट पर
आप अपनी वर्चुअल होली !!
होली खेलने क़े बाद,
वर्चुअल मिठाई भी खा लेना !
पेट भर जाय तो अपने,
वही दोस्तों को भी खिला देना !!
अब तो बस दोस्तों का ही बचा था एक सहारा !
यहाँ पर तो पहले ही बहुत चढ़ा हुआ था पारा !!
कुछ दुश्मन-ऐ दोस्तों ने दी सलाह !
सुनकर हम भी बोले- वाह भई वाह !!
कहा, थोड़ी सी उन्हें भी खिला दो भाँग !
पूरी हो जाएँगी, आपकी खाने की माँग !!
हम पर तो पहले से ही बहुत चढ़ी हुई थी !
पत्नी जी भोजन ना देने पर अड़ी हुई थी !!
ना देख और कोई अच्छा उपाय,
आखिर हमने जब दोस्तों की बात मानी !
दोस्त भी कैसे दुश्मन बन जाते है,
बात ये अच्छे से उसी दिन हमने जानी !!
खाने क़े बाद उनकी भाँग !
चूल्हे में गई हमारी माँग !!
बेहतर है,ना सुनो आगे की कहानी,
हमारा तो जो हुआ, सो हुआ !
दुश्मन को भी ना मिले ऐसे दोस्त
मांगते है केवल, बस यही दुआ !!
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