Saturday, March 24, 2012

नसीब ऐ-गम.....!!


रहती हो भले, रात अँधेरी
मेरे नसीब की तरह
टिमटिमाते रहते है फिर भी
आसमान पर इक्के-दुक्के सितारे !
आंसुओ से मेरे, 
भला क्या मुकाबला उनका
झिलमिलाते ही रहते है सदा
आंसुओं में मेरे अनगिनत सितारें !!

सुबह से ही आज जा रहा
क्यों डूबा मेरा ये दिल
ना धडका था कभी यूँ
रह रहकर तो मेरा दिल !
जाने ऐसी क्या बात थी
उस नन्हें-मुन्ने चिराग में
टूटते ही उसके आज फिर
टुकड़े-टुकड़े हो गया
मेरा ये अपना दिल !!

संभाल-संभालकर रखा था
मैंने उस चिराग को
कितने जतन, कितने बरसों से
लगता था कुछ ऐसा, कि
मेरी जिंदगी से है उसका गहरा नाता
टूटेगा वह तो टूट कर रह जाऊंगा
और आज,
आज तो मेरा सब कुछ
रह गया टूट कर !!

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