Saturday, March 17, 2012

शून्य से शून्य तक......!!

सहेजता रहा ता-उम्र मै,
ढेर सारों शून्यों को !
आकर अचानक
एक
बढ़ा गया उनके मूल्यों को !!

शून्य से ही रहा हर दम
मेरा बहुत निकट का नाता !
जब देखो तब, बेचारा
बिन बुलाए है चला आता !!

रोते ही रहते क्यों हम अक्सर,
इस अमूल्य शून्य को ले कर !
शून्यता भी तो जीवन में,
बहुत कुछ जाती है, दे कर !!

ना जाने क्यों लोग इस तरह
शून्य से रहते, सदैव घबराते !
इसके बाद ही तो गिनती में
आकडें बाकी, सब है आते !!

शून्य तो अक्सर
मिल ही जाता बिन तलाशे !
क्यों ना आगे बढ़कर
उसे ही, हम और जरा तराशे !!

बढ़ जाएँ जीवन में,
जब ढेर सारी शुन्यता !
समझों कि, है मिलने वाली
अब, जीवन को मान्यता !!

8 comments:

  1. कल 19/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बढ़ जाएँ जीवन में,
    जब ढेर सारी शुन्यता !
    समझों कि, है मिलने वाली
    अब, जीवन को मान्यता !!
    बहुत ही सुन्दर बड़े भाई

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  3. शून्य तो अक्सर
    मिल ही जाता बिन तलाशे !
    क्यों ना आगे बढ़कर
    उसे ही, हम और जरा तराशे !!

    बहुत सुन्दर

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  4. Bahut hi sundar abhivyakti!
    lajawaab!

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  5. बढ़ जाएँ जीवन में,
    जब ढेर सारी शुन्यता !
    समझों कि, है मिलने वाली
    अब, जीवन को मान्यता !!
    वाह …………क्या बात कही है…………एक नयी दृष्टि दे दी………आभार्।

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  6. सहेजता रहा ता-उम्र मै,
    ढेर सारों शून्यों को !
    आकर अचानक “एक”
    बढ़ा गया उनके मूल्यों को !!

    वह 'एक' जीवन की सारी शून्यता का अंत कर जीवन को नए अर्थ नए आयाम दे जाता है ....
    ....फिर वह 'एक' कोई भी हो सकता है

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