क्यों जमाने ने अपनाया,
क्यों मेरे अपनों ने ठुकराया !
क्या खोया और क्या पाया,
आज तक समझ न आया !!
डूब गया था इस कदर,ज़माने की उलझनों में ....
न जाने पानी कब सिर से उपर मैंने पार पाया !!!
अपनों ने दिखाने क़े लिए तो फूल दिए,
नजर पलटते ही अंगूठा दिखाया !
गैरो ने भले दिए हो कांटे अनेक ,
जरुरत पड़ने पर गले लगाया !!
दुश्मन भी दोस्त बन जाते है अब यहाँ
अपने ना जाने क्यों आँखे दिखलाते है !
दुश्मन की दुश्मनी की भी होती है एक हद,
अपने क्यों सभी हद पार कर जाते है !!
अब भी क्यों धड़क रहा है ये नादाने दिल,
साँसों का चलना अब एक बहाना बन गया !
दर्द उगलता जा रहा हूँ आज अपने मन का,
गीत मै कोई पुराना, आज एक तराना बन गया !!
थक-सा गया हूँ,आराम भी जरुरी है...
एक लम्बी जीवन-यात्रा क़े बाद !!
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeletenice 1 poems
ReplyDeletegood morning