रेल..पलों की !
पलों की एक लम्बी-सी रेल
रोज गुजरती है मेरे सामने से !मै बैठा-बैठा गिनता रहता हूँ हर डिब्बा
और वह निकल जाती है बड़ी तेजी से !!
मेरे साथ दो मीठे-मीठे बोल बोलने का !
उसके पास रहते है ढेरो काम !
और मै बैठा रहता ऐसे ही बेकाम !
मुझे देख कर बस यू ही मुस्करा देती है !
मेरी हर बात को हंसी में टाल जाती है !
और मै खुश हो जाता हूँ, न जाने क्यों,
करने लगता हूँ फिर से इंतजार
आने वाले पलों की एक नई रेल का...!!
bahut sundar kalpanaa :)
ReplyDeleteVery nice...!
ReplyDeleteOne shoul rethink on it.
एक लम्बी-सी रेल...पलों की !
ReplyDeleteAwesome poem ...!!
What a naked truth....!!
ReplyDeleteNo words to say more.