Wednesday, February 2, 2011


रेल..पलों की !
पलों की एक लम्बी-सी  रेल 
रोज  गुजरती है मेरे सामने से !
मै बैठा-बैठा गिनता रहता हूँ हर डिब्बा 
और वह निकल जाती है बड़ी तेजी से !!
उसे वक़्त नहीं है मेरे पास बैठने का !
मेरे साथ दो मीठे-मीठे बोल बोलने का !
उसके पास रहते है ढेरो काम !
और मै बैठा रहता ऐसे ही बेकाम ! 
मुझे देख कर बस यू ही मुस्करा देती है ! 
मेरी हर बात को हंसी में टाल जाती है !
और मै खुश हो जाता हूँ, न जाने क्यों,
करने लगता हूँ फिर से इंतजार 
आने वाले पलों की एक नई रेल का...!!

4 comments:

  1. Very nice...!
    One shoul rethink on it.

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  2. एक लम्बी-सी रेल...पलों की !
    Awesome poem ...!!

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  3. What a naked truth....!!
    No words to say more.

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