Saturday, January 29, 2011
Friday, January 28, 2011
फर्क....!!
मनुष्य ने एक बार,
परेशां हो किया प्रभु से अर्ज....!
मेरे और आपके प्यार में,
आखिर क्या है फर्क....!!
प्रभु बोले-
जल की मछली मेरा प्यार है !
और प्लेट में रखी मछली
तुम्हारा प्यार है .....!!
रवि और कवि.....!
नमस्कार ओ रवि....
तू कौन ?
मै एक कवि !
मै वहा पहुच जाता हूँ
जहा तुम नहीं पहुच पाते हो !
उसने कहा -
क्यों अपने आप को को बहलाते हो !
व्यर्थ ही ख्वाबी महल बनाते हो !
जीने की आदत है !
शराफत तुझमे नदारत है !
तू तो है एक निरीह प्राणी !
मेरे सामने तेरी क्या सानी !
अरे जा - कहा राजा भोज
कहा गंगू तेली !
मत कर मुझसे अठखेली !
किस मूर्ख ने कहा है कि..
जहा न पहुचे रवि
वहा पहुचे कवि
अरे मैंने उसे चाय नहीं पिलाई थी !
थोड़ी सी भाँग मांग रहा था ,
वह भी नहीं खिलाई थी !
तूने उसे चाय पिलाई होगी
भाँग भी खिलाई होगी
भाँग क़े नशे में वह
कह गया होगा !
किन्तु मेरा दावा है ...
आज अपने आप पर रो रहा होगा !
स्वर्ग....?
बिदाई की थी अनूठी घड़ी...!
द्वार पर डोली सजी थी खड़ी !!
माँ की सिसकिया थमने का नाम न ले रही थी !
बिटिया न जाने क्यों मंद मंद मुसक्या रही थी !!
माँ बोली -
बेटी कभी कोई गलत काम न करना !
मेरे दूध की तुम लाज रखना !!
बिटिया बोली -
माँ, तुम चिंता न करना !
जी अपना हलकान न करना !!
मै जिस घर में जाउगी
उस घर को स्वर्ग बना दूगी !
जाहिर है कि घर वालो को
स्वर्गवासी बना दूगी...!!
अभिलाषा जीवन की...!
जिन पत्थरो में मैंने खोजे थे कभी देवता,
उन्ही पत्थरो ने किया आज लहूलुहान मुझे...!!
जिन महलों पर राज किये बरसो बड़े शान से,
उन्ही महलों ने बना दिया आज दरबान मुझे !!
उन्ही निगाहों ने कर दिया अब शर्मवान मुझे !!
जिंदगी क़े बरसो वर्ष कर दिए कुर्बान जिन पर,
उन औलादों ने आज बना दिया कूड़ादान मुझे !!
जिन अकेली राहों पर चलता जा रहा हूँ अकेला,
वही राहे कर रही है मजबूत और बलवान मुझे !!
न कभी घबराया और न कभी घबराऊंगा,
विश्वास है केवल वक़्त बनाएगा कर्मवान मुझे !!
Monday, January 24, 2011
एक और दिन .....!!
लो, आ गया एक और नया दिन
वह नहीं रहता मेरे सामने हाथ बाँधे...
वह नहीं खड़ा रहता सिर क़े बल मेरे सामने
रोज मै ही उसे नमस्कार करता हूँ !
उसके हालचाल पूछता हूँ !!
वह दिन भर मेरे सामने खेलता रहता है !
मटर-गश्ती करता रहता है !!
उसे नहीं इंतजार है, मेरे किसी आदेश का
जानता है दिन भर, उसे करना है केवल आराम !
वह आया है, करने को केवल विश्राम !!
इसी तरह दिन गुजारकर वह चला जायेगा
और फिर मै लग जाउगा...
एक नए दिन क़े इंतजार में !
Sunday, January 23, 2011
Thursday, January 20, 2011
बहुत दिनों बाद....!!
लुप्त हो गई रौशनी हर तरफ,
तनिक देर य़ू ही जल क़े !
दिन की पहचान खो गई,
पहुच गए शाम क़े धुधलके !!
कल्पनातीत है यह अपार समुद्र
नहीं नज़र आता कही किनारा !
खोजता फिरता फिर भी न पाता,
हुआ अब अवगुंठन हमारा !!
हिला डुला इस अन्धकार से,
आ रहे कुछ पदचाप हल्के !
सोचता जो सुख-मुक्ति मार्ग,
नहीं जानता भ्रम मरुपथ क़े !!
Wednesday, January 19, 2011
ज्ञान की देवी
संगमरमरी बाहे उसकी
तन फूलो की ड़ाल !
नैन उसके जादू भरे
मुख चाँदी की थाल !
कुंदन जैसे ओंठ रसिले
रेशम जैसे बाल !
चंदा-सूरज छुप जाय
देख क़े गोरे गाल !
उसके दर्प की माया से
आँखे है लालो-लाल !
बहती नदिया को शर्माए
मस्त पवन की चाल !
सुंदर सुंदर गीत मिलन क़े
मधुर -मधुर सुरताल !
वसंत पग पग नाचे
मौसम खेले हाल !
वह मेरे ज्ञान की देवी
मै उसका महिपाल !
Tuesday, January 18, 2011
समग्र क्रांति
क्रांति की खोज में निकला
जब अंतिम घुड़सवार भी
सुविधा का ताबीज बाधंकर
कुर्सियों क़े जंगल में खो गया
मैंने पूछा था नेताजी -
आप की दूसरी आजादी को क्या हो गया था ?
राजनीति ऑपरेशन टेबल पर पड़ी थी
दुर्भाग्य की उमर बड़ी थी
फरेबी डॉक्टर
आश्वासनों क़े इंजेक्शन पर इंजेक्शन लगाये जा रहे थे
भ्रस्टाचार क़े कैप्सूल पर कैप्सूल खिला रहे थे
देश का भविष्य सो गया था
और भाई -साब
आप से क्या बतलाये
स्वतंत्रता की समग्र क्रांति का
एबार्शन हो गया था !
Sunday, January 16, 2011
शुद्धता .....!!
रसोई शुद्ध तो भोजन शुद्ध...
भोजन शुद्ध तो तन शुद्ध !
तन शुद्ध तो मन शुद्ध...
मन शुद्ध तो आत्मा शुद्ध !
आत्मा शुद्ध तो इंसान शुद्ध..
इंसान शुद्ध तो समाज शुद्ध !
समाज शुद्ध तो देश शुद्ध..
देश शुद्ध तो विश्व शुद्ध...!!
किचन बनाम..रसोईघर
आजकल क़े किचन लोग बनाते है शानदार....
और फास्ट-फ़ूड में जाकर खाते है शान से.... !
गोल गप्पे और भेल खाने में बड़ा मजा आता है !
इतना कमा रहे है हम काहे क़े लिए,
खाना बनाना अब एक बोझ नज़र आता है !
एक वक़्त था जब सब रसोई में थे बैठते,
और माँ देती जाती थी गरम- गरम रोटी !
आज तो बस ये आलम है कि क्या कहे...
गनीमत समझो गर मिल जाये खाने को रोटी !!
Saturday, January 15, 2011
ये लोग ......?
Friday, January 14, 2011
समय नहीं है मेरे पास....!!
कजरारे नैनो की झील में तैरने का...
काली-घटाओ से बालो में उलझने का....
बढते जाना है वीरानों को पार करते हुए....
मंजिल मिलने में कोई मतभेद नहीं !!
कर्म तो करते चले जाना है जरुरी....
फिसल जाऊ तो भी कोई खेद नहीं...!!
यही वक़्त है जीवन में कुछ करने का...
खो दिया इसे तो, कल को पड़ेगा पछताना !
जीवन क़े इन अमूल्य समय का दुरुपयोग...
बना जायेगा मुझे गुजरे वक़्त का अफसाना !!
Wednesday, January 12, 2011
क्या करे अब....?
अपने ही हाथो से अपना घर जला दिया,
अब औरो क़े घर क़ी आग बुझा रहे है..!
खुद को पता नहीं अपनी गली का रास्ता,
भूलो को घर का रास्ता दिखा रहे है..!!
साकार ना हो सका स्वप्न झोपड़ी बनाने का,
सपनो में वे ही ताजमहल बना रहे है..!
कल ही तो ओले बरसे थे बस्ती में,
आज फिर से अपना सर मुडा रहे है..!!
पहले तो एक चिराग से बदला ले लिया,
अब सूरज को दीया दिखा रहे है..!
भगवान पर एहसान जताने लगे है,
इमान - धरम भी अब दुकान से ले रहे है..!!
मै तो बस .....!
दर्द उगलता हूँ मै अपनी चुभन का !
गीत गाता हूँ बस मै अपने मन का !
मै तो करता हूँ महज
सिर्फ इतना ही काम !
लिखता फूल-पत्तो पर
बस अपने ही नाम !
सांसों में सो रहा, सांसों का सूनापन !
लोग कहे -मूर्ख कट रैन
क्यों खोये अपना चैन
जिसमे नहीं है कोई रास
क्यों करे तू ऐसी बकवास !
इस नीली उदासी की छत कहाँ तक ढोऊ !
जहाँ देखो कांटे, किधर माथा टिका सोऊ !
आखिर मै क्या करू
आँखों का पीकर जल
चोंटे सहलाता हर पर
नहीं बनना चाहता राजा नल ...!
श्रद्धा-सुमन...!
अपने ही हाथो आज अर्पित कर दिए मैंने श्रद्धा-सुमन...!
नहीं देख सकता और न देख पाउगा मै किसी का रुदन ...!!
हर समधिशायी से आखिर क्या है मेरा नाता !
हर मजार क़े सम्मुख जाकर क्यों आंसू बहाता !!
किसने देखा चाँद रुपहला,आज जगत का जीवन कैसा ?
कही, अँधेरी कही उजाली,जीवन की यह धार निराली !!
हर चिता को देख क्यों,मेरे दृग है भर जाते ...!
जग व्यथा देख मन में बहुत सारे प्रश्न आते ..!!
शून्य, शून्य,..शून्यकाल में भटकते है,मेरे एहसास क़े बादल !
व्यथा ना जाने कब खोल जाती मेरे सुखद एकांत की सांकल !!
रो लेता हूँ हर बार, शायद मेरे अश्रु सुमन बन जाये !
उन दिवंगतो की आत्माओं को भाव स्नेहमाल वही पहनाये !!
Tuesday, January 11, 2011
आवाज दे रही....!!
चाँद की मोहक बगिया में
खिल पड़े चमकते तारे !
झरना बह रहा झर-झर
चहू ओर मस्त नज़ारे !
आवाज दे हमें पंछी प्यारे !
मोह-माया को त्याग कर
चले, नदी क़े उस किनारे !
हर साँस में खिल जायेगे
अतृप्ति क़े निशा हमारे !
Monday, January 10, 2011
सूनापन : एक प्रतिक्रिया
शहजादा हूँ मै वेदना का,
व्यथा है प्रियतमा मेरी..!
नहीं जानता कब हुई विधवा,
ह्रदय की मेरी कल्पना कोरी..!!
सच है कि आज हूँ मै रास्ते क़ी धूल,
वक्क्त क़े क्रूर पंजो में दबा एक मासूम फूल..!
आज तो मै रोता हूँ अपनों क़ी वफाओं पर,
रहमो -करम से, भीख में मिली जफ़ाओ पर..!!
जीवन डगर पर चला,
मै बिन किसी साथी..!
एक पहिये क़े रथ का,
बन गया मै सारथी..!!
शून्यकाल में भटकते है,
मेरे एहसास क़े बादल..!
व्यथा न जाने कब खोल जाती ,
मेरे सुखद एकांत की सांकल..!
बरसो बीते मगर अधूरी,
अब तक जीवन की आस..!
न आया आज तक कभी,
मेरे अधरों पर मृदु-हास..!!
ख्वाबो का पेड़ मुरझा गया,
वीरान हो गयी हर डाली..!
बीते हुए अतीत की आखिर,
मै भी कब तक करू रखवाली..!!
फूल जो मुझको मिला,
वह भी आखिर टूटा मिला..!
न मिली कभी ख़ुशी,
भाग्य मुझे फूटा मिला..!!
आश्चर्य नहीं गर आज तुम मुझसे कतराओ,
दूर से मुझे आता देख वह राह ही छोड़ जाओ..!
लेकिन वक्त पर ना करो तुम इतना एतबार,
क्या पता, कल शायद इसे हो जाये हमसे ही प्यार..!!
व्यथा है प्रियतमा मेरी..!
नहीं जानता कब हुई विधवा,
ह्रदय की मेरी कल्पना कोरी..!!
सच है कि आज हूँ मै रास्ते क़ी धूल,
वक्क्त क़े क्रूर पंजो में दबा एक मासूम फूल..!
आज तो मै रोता हूँ अपनों क़ी वफाओं पर,
रहमो -करम से, भीख में मिली जफ़ाओ पर..!!
जीवन डगर पर चला,
मै बिन किसी साथी..!
एक पहिये क़े रथ का,
बन गया मै सारथी..!!
शून्यकाल में भटकते है,
मेरे एहसास क़े बादल..!
व्यथा न जाने कब खोल जाती ,
मेरे सुखद एकांत की सांकल..!
बरसो बीते मगर अधूरी,
अब तक जीवन की आस..!
न आया आज तक कभी,
मेरे अधरों पर मृदु-हास..!!
ख्वाबो का पेड़ मुरझा गया,
वीरान हो गयी हर डाली..!
बीते हुए अतीत की आखिर,
मै भी कब तक करू रखवाली..!!
फूल जो मुझको मिला,
वह भी आखिर टूटा मिला..!
न मिली कभी ख़ुशी,
भाग्य मुझे फूटा मिला..!!
आश्चर्य नहीं गर आज तुम मुझसे कतराओ,
दूर से मुझे आता देख वह राह ही छोड़ जाओ..!
लेकिन वक्त पर ना करो तुम इतना एतबार,
क्या पता, कल शायद इसे हो जाये हमसे ही प्यार..!!
Sunday, January 9, 2011
कवि......!
फिर भी कहता चला जाता है !
बात बने या ना बने ,
कोशिश कर बनाता चला जाता है !!
बनने को तो सभी,
कवि बन जाते है !
लेकिन ,
रवि तो दूर ; किरण तक
भी नहीं पहुच पाते है !!
नई धारा चलाने की
उनकी चाह है निराली !
भारत की है चाय
और, इग्लैंड की प्याली !!
वे तो करते है महज
इतने ही काम !
कुछ कोरे पन्नो पर
लिख जाते है ; बस
अपने ही नाम !!
Saturday, January 8, 2011
प्रकृति क़े बदलते रंग...!!
क्या भर गया है, हमारा घड़ा पाप से !
अथवा हम ग्रसित हो रहे किसी श्राप से !!
मैदानों में बरफ और पहाड़ो में गरम !
क्यों प्रकृति बदल रही अपना धरम !!
दिनों-दिन प्रकृति पर हम करते रहे अत्याचार !
बेचारी सब सहती रही हो कर बेबस-लाचार !!
जब इंसान मिटाने पर तूल गया उसकी गरिमा !
तब वह क्यों कर बाँधे रखती अपनी ही सीमा !!
अब भी वक़्त है मत करो उससे खिलवाड़ !
वरना सह नहीं पावोगे उसकी धोबी-पछाड़ !!
Friday, January 7, 2011
फेसबुक-मंथन
एक ज़माने में हर गाँव में होती थी चौपाल !
जिसमे हर कोई रखते अपने-अपने ख्याल !!
सब लोग होते थे आमने- सामने !
और खूब चला करती थी तीर-कमाने !!
सब कोई मिलकर हंसी-मजाक करते !
पर कोई अपनी सीमाये कभी न लांघते !!
फेस-बुक भी है चौपाल का आधुनिक रूप !
हम क्यों करे इसे इतना विभ्त्सव कुरूप !!
अगर हम स्वयं ही कर ले आत्म-मंथन !
तो फिर करना क्यों पड़े फेसबुक-मंथन !!
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