Saturday, January 8, 2011

प्रकृति क़े बदलते रंग...!!

क्या भर गया है, हमारा घड़ा पाप से ! 
अथवा हम ग्रसित हो रहे किसी श्राप से !!
मैदानों में बरफ और पहाड़ो में गरम !
क्यों प्रकृति बदल रही अपना धरम !!
दिनों-दिन प्रकृति पर हम करते रहे अत्याचार !
बेचारी सब सहती रही हो कर बेबस-लाचार !!


जब इंसान मिटाने पर तूल गया उसकी गरिमा ! 
तब वह क्यों कर बाँधे रखती अपनी ही सीमा !!
अब भी वक़्त है मत करो उससे खिलवाड़ !
वरना सह नहीं पावोगे उसकी धोबी-पछाड़ !!

4 comments:

  1. बिलकुल सही कहा दिनेश जी.

    सादर

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  2. Its very complicated Can't understand it.

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  3. अब भी वक़्त है .....
    बिलकुल सही !!

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  4. प्रियवर ,
    सत्य है बहुत भयावह, क्यूंकि उलटी गिनती तो बहुत पहले ही शुरू हो गई है ,समूल नाश होगा पूरी मानवजाति ,केवल मानव का, सारे वनस्पति बने रहेंगे और ,पृथ्वी पर हमेशा की तरह फिर राज करेंगे |मानव को मौक़ा तो ईश्वरीय मिला था परन्तु अपनी प्रकृति के अनुरूप अपनी हवस,लालच द्वारा ,विनाश की रचना कर ली है |यही उसकी उपलब्धि है |शायद नैसर्गिक अंत |

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