दर्द उगलता हूँ मै अपनी चुभन का !
गीत गाता हूँ बस मै अपने मन का !
मै तो करता हूँ महज
सिर्फ इतना ही काम !
लिखता फूल-पत्तो पर
बस अपने ही नाम !
सांसों में सो रहा, सांसों का सूनापन !
लोग कहे -मूर्ख कट रैन
क्यों खोये अपना चैन
जिसमे नहीं है कोई रास
क्यों करे तू ऐसी बकवास !
इस नीली उदासी की छत कहाँ तक ढोऊ !
जहाँ देखो कांटे, किधर माथा टिका सोऊ !
आखिर मै क्या करू
आँखों का पीकर जल
चोंटे सहलाता हर पर
नहीं बनना चाहता राजा नल ...!
जहाँ देखो कांटे...,
ReplyDeleteकिधर माथा टिका सोऊ...
awesome...!!
What a thought.....!!
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