Friday, January 28, 2011

रवि और कवि.....!



नमस्कार ओ रवि....
तू कौन ?
मै एक कवि !

मै वहा पहुच जाता हूँ 
जहा तुम नहीं पहुच पाते हो !
उसने कहा -
क्यों अपने आप को को बहलाते हो !
व्यर्थ ही ख्वाबी महल बनाते हो !

अरे, तेरी तो गन्दगी में 
जीने की आदत है !
शराफत तुझमे नदारत है !
तू तो है एक निरीह प्राणी !
मेरे सामने तेरी क्या सानी !

अरे जा - कहा राजा भोज 
कहा गंगू तेली !
मत कर मुझसे अठखेली !
किस मूर्ख ने कहा है कि..
जहा न पहुचे रवि 
वहा पहुचे कवि 
अरे मैंने उसे चाय नहीं पिलाई थी !
थोड़ी सी भाँग मांग रहा था ,
वह भी नहीं खिलाई थी !

तूने उसे चाय पिलाई होगी 
भाँग भी खिलाई होगी 
भाँग क़े नशे में वह 
कह गया होगा !
किन्तु मेरा दावा है ...
आज अपने आप पर रो रहा होगा !

2 comments:

  1. बहुत सुंदर...मजा आ गया पढकर....!!

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  2. बहुत सुंदर....!

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