लो, आ गया एक और नया दिन
वह नहीं रहता मेरे सामने हाथ बाँधे...
वह नहीं खड़ा रहता सिर क़े बल मेरे सामने
रोज मै ही उसे नमस्कार करता हूँ !
उसके हालचाल पूछता हूँ !!
वह दिन भर मेरे सामने खेलता रहता है !
मटर-गश्ती करता रहता है !!
उसे नहीं इंतजार है, मेरे किसी आदेश का
जानता है दिन भर, उसे करना है केवल आराम !
वह आया है, करने को केवल विश्राम !!
इसी तरह दिन गुजारकर वह चला जायेगा
और फिर मै लग जाउगा...
एक नए दिन क़े इंतजार में !
No comments:
Post a Comment