Monday, January 24, 2011

एक और दिन .....!!


लो, आ गया एक और नया दिन 
वह नहीं रहता मेरे सामने हाथ बाँधे... 
वह नहीं खड़ा रहता सिर क़े बल मेरे सामने 
रोज मै ही उसे नमस्कार करता हूँ ! 
उसके हालचाल पूछता हूँ !!
वह दिन भर मेरे सामने खेलता रहता है !
मटर-गश्ती करता रहता है !!
उसे नहीं इंतजार है, मेरे किसी आदेश का 
जानता है दिन भर, उसे करना है केवल आराम !
वह आया है, करने को केवल विश्राम !!
इसी तरह दिन गुजारकर वह चला जायेगा 
और फिर मै लग जाउगा...
एक नए दिन क़े इंतजार में ! 

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