Friday, January 28, 2011

अनकहनी...!


जीवन क़े कुछ सच,
बहुत होते है बहुत नग्न..! 
इसीलिए नहीं हुआ जाता
इसमे तल्लीनता से मग्न...!! 
पियूष उघडे हुए माता 
दूध पिलाती जाती है .....
लेकिन 
किस आशा पर ;
यही, न कि
बेटा अंतिम समय 
अवश्य पिलाएगा 
दो बूँद 
पानी क़े......!!


कहते-सुनते अच्छा नहीं है लगता !
फिर भी सच तो आखिर सच होता !!

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