जीवन क़े कुछ सच,
बहुत होते है बहुत नग्न..!
इसीलिए नहीं हुआ जाता
इसमे तल्लीनता से मग्न...!!
पियूष उघडे हुए माता
दूध पिलाती जाती है .....
लेकिन
किस आशा पर ;
यही, न कि
बेटा अंतिम समय
अवश्य पिलाएगा
दो बूँद
पानी क़े......!!
कहते-सुनते अच्छा नहीं है लगता !
फिर भी सच तो आखिर सच होता !!
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