Monday, January 10, 2011

सूनापन : एक प्रतिक्रिया


शहजादा हूँ मै वेदना का,
व्यथा है प्रियतमा मेरी..!
नहीं जानता कब हुई विधवा,
ह्रदय की मेरी कल्पना कोरी..!!

सच है कि आज हूँ मै रास्ते क़ी धूल,
वक्क्त क़े क्रूर पंजो में दबा एक मासूम फूल..!
आज तो मै रोता हूँ अपनों क़ी वफाओं पर,
रहमो -करम से, भीख में मिली जफ़ाओ पर..!!

जीवन डगर पर चला,
मै बिन किसी साथी..!
एक पहिये क़े रथ का,
बन गया मै सारथी..!!

शून्यकाल में भटकते है,
मेरे एहसास क़े बादल..!
व्यथा न जाने कब खोल जाती ,
मेरे सुखद एकांत की सांकल..!

बरसो बीते मगर अधूरी,
अब तक जीवन की आस..!
न आया आज तक कभी,
मेरे अधरों पर मृदु-हास..!!

ख्वाबो का पेड़ मुरझा गया,
वीरान हो गयी हर डाली..!
बीते हुए अतीत की आखिर,
मै भी कब तक करू रखवाली..!!

फूल जो मुझको मिला,
वह भी आखिर टूटा मिला..!
न मिली कभी ख़ुशी,
भाग्य मुझे फूटा मिला..!!

आश्चर्य नहीं गर आज तुम मुझसे कतराओ,
दूर से मुझे आता देख वह राह ही छोड़ जाओ..!
लेकिन वक्त पर ना करो तुम इतना एतबार,
क्या पता, कल शायद इसे हो जाये हमसे ही प्यार..!!

2 comments:

  1. जीवन डगर पर चला,
    मै बिन किसी साथी..!
    एक पहिये क़े रथ का,
    बन गया मै सारथी..!!//
    beautiful composition bade bhai //

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  2. बहुत ही सुंदर रचना. वधाई

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