Wednesday, January 12, 2011

श्रद्धा-सुमन...!

अपने ही हाथो आज अर्पित कर दिए मैंने श्रद्धा-सुमन...!
नहीं देख सकता और न देख पाउगा मै किसी का रुदन ...!!
हर समधिशायी से आखिर क्या है मेरा नाता !
हर मजार क़े सम्मुख जाकर क्यों आंसू बहाता !!
किसने देखा चाँद रुपहला,आज जगत का जीवन कैसा ?
कही, अँधेरी कही उजाली,जीवन की यह धार निराली !!
हर चिता को देख क्यों,मेरे दृग है भर जाते ...!
जग व्यथा देख मन में बहुत सारे प्रश्न आते ..!!
शून्य, शून्य,..शून्यकाल में भटकते है,मेरे एहसास क़े बादल !
व्यथा ना जाने कब खोल जाती मेरे सुखद एकांत की सांकल !!
रो लेता हूँ हर बार, शायद मेरे अश्रु सुमन बन जाये !
उन दिवंगतो की आत्माओं को भाव स्नेहमाल वही पहनाये !!

4 comments:

  1. बेहतरीन!प्रस्तुती

    सादर

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  2. जीवन की यह धार निराली....!
    अति सुंदर ...!!

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  3. आज जगत का जीवन कैसा....?
    बेहतरीन....!!

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